नीरज दइया इन दिनों
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28 अक्तूबर, 2016
दीप जलाए
सभी को
लीलता है-
अंधकार
मूर्त-अमूर्त
नहीं छोड़ता
वह किसी को
मगर मन में
जगमग करता है-
एक दीप सदा....
इस मन-दीपक को
आस-उम्मीद की
रोशनी देते रहना तुम।
तुम जो बैठे हो
दीप जलाएं
मेरे मन-आंगन !
-नीरज दइया
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